यह वही प्राचीन भूमि है, जहां दूसरे देशों को आने से पहले तत्वज्ञान का होना महा जरूरी था। यह वही भारत है जहां हिमालय अपना सीना ताने इस भूमि की रक्षा करती थी और करती है। यह वही भारत है जहां सबसे पहले मानव शरीर पर सर्जरी की गई थी। यह वही भारत है जिसने पूरी दुनिया को ज्ञान का भंडार दिया।
आजादी के बाद बीच के कुछ सालों में गलत तरीके से राजनीति करने की वजह से हमारा देश पिछड़ गया। लेकिन अब और नहीं हमारा देश बड़ी तेजी से तरक्की की राह पर चल पड़ा है और आने वाले कुछ समय में भारत दुनिया का विश्व गुरु एक बार फिर से बनेगा।
भारत का भविष्य आज के युवाओं की सोच तथा कर्म पर ही निर्भर करता है। देश में आज 65 प्रतिशत आबादी युवाओं की है, इसलिए भारत के भविष्य के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका युवा ही निभाने वाले हैं। 1897 में मद्रास में युवाओं को संबोधित करते हुए स्वामी विवेकानंद ने जो संदेश तब युवाओं को दिया था वह 2020 में शायद पहले से अधिक सार्थक लगता है। स्वामी जी ने कहा था- 'भारत की संतानों, तुमसे आज मैं यहां कुछ व्यावहारिक बातें कहूंगा, और तुम्हें तुम्हारे पूर्व गौरव की याद दिलाने का उद्देश्य केवल इतना ही है! कितनी ही बार मुझसे कहा गया है कि अतीत की ओर नजर डालने से सिर्फ मन की अवनति ही होती है और इससे कोई फल नहीं होता, अत: हमें भविष्य की ओर दृष्टि रखनी चाहिए। यह सच है, परंतु अतीत से ही भविष्य का निर्माण होता है। अत: जहां तक हो सके, अतीत की ओर देखो, पीछे जो चिरन्तन निर्झर बह रहा है, आकंठ उसका जल पिओ और उसके बाद सामने देखो और भारत की उज्ज्वलतर, महत्तर और पहले से और भी ऊंचा उठाओ। हमारे पूर्वज महान् थे। पहले यह बात हमें याद करनी होगी। हमें समझना होगा कि हम किन उपादानों से बने हैं, कौन सा खून हमारी नसों में बह रहा है। उस खून पर हमें विश्वास करना होगा और अतीत के उसके कृतित्व पर भी, इस विश्वास और अतीत गौरव के ज्ञान से हम अवश्य एक ऐसे भारत की नींव डालेंगे, जो पहले से श्रेष्ठ होगा। अवश्य ही यहां बीच बीच में दुर्दशा और अवनति के युग भी रहे हैं, पर उनको मैं अधिक महत्त्व नहीं देता। हम सभी उसके विषय में जानते हैं। ऐसे युगों का होना आवश्यक था। किसी विशाल वृक्ष से एक सुंदर पका हुआ फल पैदा हुआ, फल जमीन पर गिरा, मुरझाया और सड़ा, इस विनाश से जो अंकुर उगा, सम्भव है वह पहले के वृक्ष से बड़ा हो जाय। अवनति के जिस युग के भीतर से हमें गुजरना पड़ा, वे सभी आवश्यक थे। इसी अवनति के भीतर से भविष्य का भारत आ रहा है, वह अंकुरित हो चुका है, उसके नये पल्लव निकल चुके हैं और उस शक्तिघर विशालकाय ऊध्र्वमूल वृक्ष का निकलना शुरू हो चुका है और उसी के संबंध में मैं तुमसे कहने जा रहा हूं।... हमारे पास एकमात्र सम्मिलन भूमि है, हमारी पवित्र परम्परा, हमारा धर्म। एकमात्र सामान्य आधार वही है, और उसी पर हमें संगठन करना होगा। यूरोप में राजनीतिक विचार ही राष्ट्रीय एकता का कारण है। किन्तु एशिया में राष्ट्रीय ऐक्य का आधार धर्म ही है, अत: भारत के भविष्य संगठन की पहली शर्त के तौर पर उसी धार्मिक एकता की ही आवश्यकता है। देश भर में एक ही धर्म सबको स्वीकार करना होगा।